क्या फरक पड़ता है भाई...



दुनिया कहां की कहां पहुंच गई, लेकिन कुछ बेचारे काम के मारे हमेशा हड़ताल करते ही रह गए। हालांकि भीड़ में मैं भी शामिल हूं, पर मैं दुनिया से अलग थोडे़ ही हूं।