शहर में अव्यवस्थाओं का बोलबाला

हादसों को आमत्रंण देते शहर के खुले मैनहोल

शहर के विकास के लिए प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये बजट मिलता है। इसके साथ ही नगरपरिषद्, नगर विकास न्यास भूमि विक्रय, गृहकर, कृषि भूमि नियमन सहित विभिन्न मदों के माध्यम से प्रति वर्ष करोड़ों रुपये राजस्व वसूली करती हैं। बावजूद इसके शहर का जो विकास होना चाहिये वह नहीं हो पा रहा है। जिला मुख्यालय पर सीवरेज व्यवस्था चरमराई हुई है। नालियों व बडे़ नालों में ओवरफ्लो गंदा पानी जमा रहकर जानलेवा बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है। सफाई व्यवस्था पर लाखों रुपये ख्ार्च होने के बाद भी सफाई व्यवस्था का बाजा बजा हुआ है। हल्की बारिश होने पर भी शहर नरक का रूप धारण कर लेता है। जगह-जगह पडे़ गंदगी के ढेर सड़ांध मारकर शहर का वातावरण प्रदूषित कर रहे हैं। ए माइनर में पूरे शहर की गंदगी डाली जाने के बावजूद प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है। कहने को तो श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय है परन्तु शहर की एक-दो मुख्य सड़कों को छोड़कर सभी सड़कें टूटी-फूटी व उबड़-खाबड़ हैं। अधिकांश सड़कों के पुननिüर्माण के लिए बजट पारित होने के बाद भी अधरझूल में हैं। गली मोहल्लों की सड़कों का तो वजूद ही खत्म होने लगा है। अनेक सड़कों पर वर्षों से कंकरीट बिछाकर व मिट्टी डालकर छोड़ रखी है। डामर के इंतजार में इन सड़कों पर बिछाये पत्थर भी मिट्टी के हटने से उखड़कर आवागमन को बाधित करते हैं। इन पर वाहन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो रहा है। नगरपरिषद् का कोई भी नया चेयरमैन बनता है या फिर एमएलए चुना जाता है उनका एक ही रटा-रटाया भाषण होता है कि शहर की काया पलट देंगे लेकिन जिले में दो-दो मंत्री भी रह चुके हैं। हालात पहले से भी बिगड़ते जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार शहर के विकास के खाते सरकारी कागजों में जितना पैसा दिखाया जाता है। अगर सही तरीके से इसका चालीस प्रतिशत भी खर्च किया जाये तो शहर का स्वरूप बदल जायेगा। विकास के लिये आया पैसा चेयरमैन से लेकर पार्षदों तक के घरों की शोभा बढ़ा रहा है। किसी को शहर की टूटी सड़कों का गंदे पानी की निकासी की प्रवाह नहीं। इस सबके बाद ठेकेदारों के भी बडे़ उच्च विचार हैं। वह कहते हैं कि हम किसी से कम क्यों रहे। वह भी सड़कों नालियों पर लीपा पोती कर वर्क को कम्पलीट बताकर भुगतान प्राप्त करने के चक्कर में रहते हैं। नगरपरिषद् सभापति अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाकर वाहवाही लूटते हैं कि ठेकेदार द्वारा सही काम नहीं करने पर भुगतान रोक दिया जायेगा। मामला यहां आकर अटक जाता है कि चोर को चोर बना कर देना ही पडे़गा अन्यथा दोनों लटक जायेंगे। वार्ड नं. 5,6,7,9 क्षेत्र में नालियों का निर्माण इतना घटिया हुआ कि अल्प समय में ही नालियां अपना अस्तित्व खो बैठी हैं। सीमेंट की बनी सड़कें भी स्थान-स्थान से धस गयी हैं।